मेरी हिंदी तानसेन तनिष्क
मेरी हिंदी
तानसेन तनिष्कअक्सर सुना है, अब हिंदी का कोई वजूद नहीं रहा,
फिर भी ना जाने क्यों मुझमें मेरी हिंदी अभी ज़िंदा है?
शायद इसका एक ही कारण होगा-
जब से मेरी आँख खुली, मैं अपनी "माँ" को सुनता हूँ;
मेरी "माँ" पढ़ी-लिखी नहीं, फिर भी मैं उसके आदर्शों को गुनता हूँ;
जब था मेरा कंठ खुला, मैंने "माँ ही माँ" पुकारा था;
ज्ञान हुआ जब शब्दों का, तब से हिंदी की पूजा करता हूँ;
"माँ" शब्द दिया जिसने, मैं उसके वजूद को कैसे भूल सकता हूँ।