एक घर  Saurabh Maurya

एक घर

Saurabh Maurya

सोचा एक घर होगा,
बड़ा तो होगा
पर सुंदर होगा,
वहीं अंदर कहीं,
एक समंदर भी होगा,
जो कि लबालब होगा।
 

लहरे होंगी, तरंगे होंगी,
उनमें उमंग होगी,
कभी कम,
तो कभी अनंत होगी।
 

वही अंदर कहीं
बरसात भी होगी,
जो कि तकरार
या प्यार की होगी।
पर जो भी होगी,
हर दिन और
हर रात होगी।
 

छत पर कहीं
एक आकाश भी होगा,
चाँदनी और प्रिया के साथ होगा।
काम क्रिया भी होगी,
जो की अपर्याप्त होगी।
 

तल पर कहीं
पाताल भी होगा,
खजानों का भंडार होगा,
सोना होगा, चाँदी होगा,
पर दोनों निर्धारित होगा।
 

कोने में कहीं
सुनामी भी होगा,
मन विचलित होगा,
पर भाटे के साथ भी होगा।
 

हाँ जी मैंने सोचा,
एक घर होगा,
बड़ा तो होगा,
पर विशेष होगा।

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