है बस समापन शब्दों का SANTOSH GUPTA
है बस समापन शब्दों का
SANTOSH GUPTAहै बस समापन शब्दों का
भाव शेष सारा अब भी,
विराम है बस कलम का यह
बह रही मन की धारा अब भी।
हो चुकी है पंक्तियों की संध्या
है विचारों का सबेरा अब भी,
गतिमान विचारों की किरणें
कर रहीं हैं बसेरा अब भी।
माधुर्य आ चुका है रस में
पर विषय है खारा अब भी,
कुछ जीत चुका है हृदय, पर
रह गया है यह हारा अब भी।
हैं तैर रहे कुछ भाव ऊपर
कुछ ढूँढ़ रहे सहारा अब भी,
बन गए कुछ शब्द सफल
कुछ कर रहे हैं ईशारा अब भी।
लिखा गया है पूरा, पर
रह गया है यह अधूरा अब भी,
है लय से भरा बिल्कुल, पर
नहीं से ध्येय भरा अब भी।
कवि का मन कर रहा विचरण
प्रकाशमान हो रहा कण-कण,
रवि की किरण से भी तीक्ष्ण
हर दिशा में कर रहा भ्रमण।
फैल रहा उजाला हर दिशा में
पर कुछ दूर है अंधेरा अब भी,
कुछ मूल्यों का हो रहा आदर
कुछ नहीं गया स्वीकारा अब भी।
कुछ विचार छू रहे गगन
कुछ नीचे ही धरा अब भी,
कुछ की उड़ानें हवा से ऊपर
कुछ छोटे गुब्बारा अब भी।
आशय, भाव, विचारों का
नहीं बना कोई पिटारा अब भी,
आत्मसात कर ले जो विचारों को
कविता नहीं कवि के द्वारा अब भी।
अपने विचार साझा करें
कवि अपने मन के भावों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास तो करता है पर शायद पूरी तरह से उन्हें पन्नों पर अंकित नहीं कर पाता। शब्दों की एक सम्पूर्ण माला तो पिरो लेता है परंतु अपने विचारों को पूरी तरह से गंतव्य पर पहुँचा नहीं पाता। मेरी यह रचना, कवि के ऐसे ही सोच को व्यक्त करने का प्रयास करती है।