जीने की एक उम्मीद लगाई है Prince Kumar Singh
जीने की एक उम्मीद लगाई है
Prince Kumar Singhएक हताश परिंदा बन
मैंने आसमानों की सैर लगाई है,
इस बेजान सी दुनिया में भी
मैंने जीने की उम्मीद लगाई है।
मन की सारी अभिलाषाओं को
यूँ हमने जिंदा दफनाया है,
अन्न के एक दाने के लिए
मैंने दर-दर में ठोकर लगाया है।
अपनों ने ही हाथों से
स्वयं विष पिलाया है,
अमृत का नाम बता इसे
झूठा स्नेह जताया है।
हाँ फिर भी मैंने
यहाँ जीने के लिए,
एक छोटी उम्मीद लगाया है।
अपने गमों को यूँ मैंने
झूठी मुस्कुराहटों से छिपाया है,
जिसे जीवन का एक हिस्सा समझा
मुझे उसने भी ठुकराया है।
हाँ, पता नहीं फिर भी क्यों
मैंने जीने की उम्मीद लगाई है।
सुनसान पथ पर चलना
भा गया मुझे,
फिर भी आज आसमान से
कुछ सितारे तोड़ लाने की
मैंने हठ लगाई है।
हाँ मैंने फिर से,
जीने की उम्मीद लगाई है।