पाप-पुण्य Rakesh Kushwaha Rahi
पाप-पुण्य
Rakesh Kushwaha Rahiपाप-पुण्य निज कर्मों का प्रतिफल है
कर्म फल सदा ही मिलते प्रतिक्षण हैं,
कर्मानुसार ही जिन्दगी में है सुख-दु:ख
पाप-पुण्य का लेखा-जोखा प्रतिपल है।
स्वार्थपूर्ति से ही पुण्य का होता क्षरण
संसार में होता मनुज का त्रासद मरण,
सद्कर्म से ही होता समाज पल्लवित
सत्कर्म से होता जीवन में पुण्य भरण।
जिन निज कर्मों से मुक्ति मिल जाती है
मानव का पुण्य कर्म वही बन जाता है,
शेष मनुज कर्म बस पाप की गठरी सम
जो मानव का आदि से अंत बन जाता है।
परहित ही दुनिया में उत्तम पुण्य होता है
परपीड़न ही सबसे जघन्य पाप होता है,
मर्यादित जीवन से ही पुण्य का संचय है
पुण्यकर्मी ही जगत में सत्पुरूष होता है।