सुप्रभात Rakesh Kushwaha Rahi
सुप्रभात
Rakesh Kushwaha Rahiचाँद आसमान में जब भी निकला
संग अपनी चाँदनी के साथ निकला,
धरा स्वर्णिम रौशनी से रंग सी गयी
ओस सुधा बनकर पत्तों पर बिखरी।
तारों की महफिल में गा रहा है चाँद
बाल मन को भी बहला रहा है चाँद,
शर्माया सा चाँद बादलों में छिप गया
ढलती निशा के साथ जा रहा है चाँद।
तारे चमक रहें हैं धुली भोर में अभी
थोड़ी लालिमा है पूरबी छोर में कहीं,
सूरज के आगमन का शुभ संकेत है
मार्तण्ड रूके हैं घन के ओट में अभी।
पंछियों का स्वागत गान चल रहा है
मंदिरों में मंत्रों का जाप चल रहा है,
घंटियों के स्वर से मन शांत हो चला
भास्कर के तेज से संसार चल पड़ा है।