सब कुछ जायज़ है Anupama Ravindra Singh Thakur
सब कुछ जायज़ है
Anupama Ravindra Singh Thakurकुछ पाने का जूनून ऐसा
सही गलत से
फिर नाता कैसा?
आगे बढ़ने की होड़ में
सब कुछ अब जायज़ है।
तरक्क़ी के पीछे
रची कैसी साजिश
नाजायज़ है,
जैसे -तैसे अब आगे बढ़ना है
बस यही मकसद अब बाकी है।
न्याय-अन्याय में
अब कहाँ कोई
अंतर बाकी है,
आगे बढ़ने की होड़ में
अब सब कुछ जायज़ है।
अच्छाई से नाता टूटा ,
अपनो का संग भी छूटा,
दुर्जनों की महफ़िल में
हो रही अब वाह-वाही है,
अपनों को सताकर,
खुद की बुलंदी पर इतराता है
असुरी कहकहों से
अब आसमां भी घबराता है।
उचित-अनुचित में
कहाँ कोई अंतर बाकी है
आगे बढ़ने की होड़ में
अब सब कुछ जायज़ है।
कर्मों की गेंद
उछल रही
चारों दिशाओं में है,
पद, प्रसिद्धि, अधिकार का डंका चहुँओर है,
आँखें मूंद कर
ले रहे हैं आनंद,
हर्ष का अति उन्माद है
किसी को गिरा कर
अपनी हस्ती बना रहे हैं।
झूम रहे हैं कि कोई बर्बाद है,
नेकी और हैवानियत में
कहाँ अब कोई अंतर बाकी है,
आगे बढ़ने की होड़ में
अब सब कुछ जायज़ है।
कर्म लौटकर आएगा
समय अभी बाकी है,
जो किया चुकाना होगा
भोग अभी बाकी है।
आज खुश हो ले जितना
कल क्या लेकर आएगा
यह देखना अभी बाकी है।
यह सब कर्मों का खेल है
यह लौटकर तो आएगा,
जो आज किसी को रुला रहा है
कल कोई उसे रुलाएगा,
कर ले जितनी मनमर्जी
आज हैवानियत तेरी जायज़ है,
छल-कपट का खेल खेल ले
आज वहशीपन तेरा जायज़ है।