उम्मीद Ravi Panwar
उम्मीद
Ravi Panwarसदाएं सरहदों के
आर-पार रहतीं है,
एक दूजे से मिलने को
बेकरार रहतीं है।
छुड़ा नहीं पाती खुद को
तहखानों की कैद से,
कुछ रूहें यूँ ही
ताउम्र गिरफ्तार रहतीं है।
छू न ले आह को
मरहमों की शिफा जब तक,
सूखे घावों में भी
गहरी दरार रहती है।
कितनी भी हो कैफियत
उम्मीदों के सफर में,
मुकम्मल होने को कोशिशें
हरदम तैयार रहती हैं।
और, घोंप दे खंजर "रवि"
अपने गुनाह के सीने में,
फिर देख कैसे ज़िन्दगी में
सब-ए-बहार रहतीं हैं।