अना का मसला  Ravi Panwar

अना का मसला

Ravi Panwar

खूबियाँ इन्सान की
पल भर में मिट जाती हैं,
बनके शैतान एक
किरदार में सिमट जाती हैं।
 

सरसराती सरकती हैं
ज़हन के दरीचों में,
जकड़ के मुझको
मेरे बदन से लिपट जाती हैं।
 

भला कह दे खुद खुदा भी
तो ना मंजूर होता है,
जो बात इक बार
आँखों को खटक जाती है।
 

बचाता रहा ताउम्र
जो महल शीशे का,
दीवारें आजकल उसकी
हवाओं से चटक जाती हैं।
 

कराहता है रोज़
एक बूढ़ा रात के अधेंरो में,
बेवफा मौत भी
दरवाजे से पलट जाती है।
 

और, अकड़ कर कह रहा सबको
"रवि" ये मोम का पुतला,
एक आतिश से
सारी बस्ती निपट जाती है।

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