सब्र Ravi Panwar
सब्र
Ravi Panwarमेरी महफ़िल अधूरी है
वो मुझसे दूर बैठे हैं,
मेरे माजूर इश्क़ पर
वो नामंजूर बैठे हैं।
गिरा के नज़रों पर चिलमन
छिपा कर आरजू दिल में,
लबों को सिल कर जालिम
बड़े मगरूर बैठे हैं।
यूँ पलकें उठाई तो
दिखा उनको मेरा चेहरा,
मेरे अश्कों ने कह डाला
कि हम बेकसूर बैठे हैं।
मुझे खौफ है बस ये
कि तुम रुसवा न हो जाओ,
और इस तरफ हम भी
ज़रा मजबूर बैठे हैं।
ज़मीं पर सहर की दस्तक
फलक से रात चल दी है,
पर मैं कैसे चला जाऊँ
अभी मेरे हुजूर बैठे हैं।
"रवि" का सब्र जिन्दा है
मुसलसल देखकर उनको,
गमे दिल में था जितना भी
सभी हम भूल बैठे हैं।