एक गुलाब के वास्ते Rakesh Kushwaha Rahi
एक गुलाब के वास्ते
Rakesh Kushwaha Rahiगुलदान खरीद लाए फूलों के वास्ते
काँटे करीब आ गए चुभने के वास्ते,
सोचा नहीं था मर्ज कुछ ऐसा मिलेगा
उम्र बीत जाएगी एक गुलाब के वास्ते।
दिन रात हम चले मंजिलों के वास्ते
मेरी राहों से न मिले तेरे घर के रास्ते,
सोचा नहीं था ये स्वप्न अधूरे ही रहेंगे
लम्हें ही कम पड़ गए सपनों के वास्ते।
बेकरार हूँ मैं पल-पल सहर के वास्ते
निकली है धूप तेरी खिड़कियों के वास्ते,
सोचा नहीं था जिन्दगी में अंधेरे ही रहेंगे
जला हूँ मैं धीरे-धीरे तेरी धूप के वास्ते।