अरमान  SMITA SINGH

अरमान

SMITA SINGH

बस दो ही दिन पहले के नज़ारे
अदभुत रोशनी, रूमानी नज़ारे,
जब शब भी शबनम माफ़िक़ चमक बिखेरे
पूर्णिमा के चाँद की चाँदनी में नहाई
याद आ गई बरसों पहले की खींची लकीरें
जिसने मेरे सब अरमान बिखेरे …
चाँद से रौशन गगन विस्तृत
ख़यालों से रौशन तुम्हारी याद
चलो एक बार फिर लिखे, मिटाएँ
रेत पर लिखा तुम्हारा नाम
करें याद मिटा दें किस्मत की लकीरें
काश मेरे अरमान हों पूरे …
चाँद के प्रकाश से आकाश का नूर भी बढ़ रहा
ख़याल में तुम थे कभी,
पर चाँद देख, ख़याल आ गया तुम्हारा
फिर वही बात ज़हन में गूंज रही जैसे
फ़िज़ा भी लग रही नूरानी जैसे
तुम तो थे मेरे लिए कुदरत का वह उपहार
जिसके सामने फीके थे सारे नज़ारे
घुट गए सारे अरमान मेरे
छलावा थे दीदार तेरे …
किरदार की और कुदरत की कुछ इनायत भी है ज़रूरी
सब कुछ मन का हो या मन से हो
दोनों है अलहदा बातें
पर दोनों ही कुदरत की देन
अरमान पूरे हो ना हो मिलने के
अरमान यही हर जन्म में तू ही मिले।

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