अज्ञान Anupama Ravindra Singh Thakur
अज्ञान
Anupama Ravindra Singh Thakurपढ़ ली भागवत गीता मैंने
प्राप्त कर लिया जगत ज्ञान,
रिश्ते सारे मिथ्या हैं
संसार एक माया है।
सब कुछ समझा
सब कुछ जाना,
फिर भी मोह न तज पाया।
धृतराष्ट्र रूपी मैं
पुत्र मोह में फँसा रहा,
देख अनुचित आचरण भी
आँखें अपनी मुंदा रहा,
पढ़ ली भगवत गीता मैंने
फिर भी मोह न तज पाया।
दुर्योधन रूपी मैं
पद- प्रतिष्ठा के मद में
औरों को नीचा दिखाता रहा,
वास्तविकता को भूलाकर
सत्ता के मद में चूर
अधर्म ही करता रहा,
पढ़ ली भागवत गीता मैंने
फिर भी मोह न तज पाया।
दुशासन सा अहं पाला
अपमान औरों का करता रहा,
बल के मद में अंधा हो
कमजोरों को दबाता रहा,
पढ़ ली भागवत गीता मैंने
फिर भी मोह न तज पाया।
इस नश्वर काया को
सजाने में
घंटों मैं लगा रहा,
मोह माया में फँसा मैं
बस मंदिर-मंदिर घूमता रहा।
सभी कामनाओं में लिप्त मैं
खुद में ईश्वर को खोज ना सका,
भागवत गीता पढ़ ली मैंने
फिर भी मोहन तज पाया।