समतुल्य ARUN KUMAR SHASTRI
समतुल्य
ARUN KUMAR SHASTRIसिद्ध सतत सैद्धांतिक श्रम चाहिए
मन वाणी की गेयता संग कर्म चाहिए,
शाश्वत ज्ञान की अनुभूति के लिए
निश्छल प्रेम का परित्राण चाहिए।
मत भूलो ये माँ धरती है मानव की
कर्म किये सब कुछ मिलता सत्य यही,
जो भी माँगो, प्रभु से माँगो, वो ही देगा
फल भी पकता है, समय के अनुसार ही।
विश्व के कल्याण को स्वार्थ का त्याग चाहिए
मानव हित साधने को मन तो एकाग्र चाहिए,
शाश्वत ज्ञान की अनुभूति के लिए
सरल हृदय से बस प्रार्थना चाहिए।
श्रम साध्य समीक्षा किसकी और कैसी
पहले स्वच्छ दिल से एकाधिकार चाहिए,
जैसे भोजन हेतु बर्तन हम साफ किया करते हैं
वैसे ही धी, धृति, ध्यान का संज्ञान चाहिए।
भाषा के संचालन हित, साध्य कीजिए व्याकरण
मन को बाँधने से ही होगा तब शब्द अलंकरण,
ये तो हर पल, पल-पल भागेगा इधर-उधर
ध्यान दीजिए, ध्यान कीजिए, कर संतर्पण।