वह मजदूर है  SANTOSH GUPTA

वह मजदूर है

SANTOSH GUPTA

तराशकर ताज, जो गँवा दे हाथ,
वह मजदूर है।
ओढ़कर धूप, जो पा ले छाह,
वह मजदूर है।
नींव के नीचे, जो हैं बुनियाद,
वह मजदूर है।
भूख से भी तेज, प्यास से भी जोर
नींद को भी जो सुला दे रात,
वह मजदूर है।
ये ऊँची ईमारत, ये गहरी खदान
ये हल्की उजरत, ये भारी सामान
थकावट को जो है देता थकान,
वह मजदूर है।
जिस झुग्गी पर टिका है पक्का मकान,
वह मजदूर है।
आसमान के नीचे जो दबा है आसमान,
वह मजदूर है।

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