पिता SANTOSH GUPTA
पिता
SANTOSH GUPTAदेखा नहीं किसी ने कभी रोते हुए उन्हें
क्योंकि आँखों में उनके आँसू कभी बहते नहीं मिले,
दमक न कम हुई कभी बच्चों के जूतों की
क्योंकि पिता के कदमों तले, चप्पल घिसे मिले।
बच्चों के जेब में सदा खुशियाँ भरी रही
क्योंकि पिता के पर्स में, उनकी तकलीफें भरे मिले
न रुकी कभी बच्चों की इच्छाओं की गाड़ी
क्योंकि चलते रहे पिता कभी ठहरे नहीं मिले।
सीखा पिता से बच्चों ने बस मुस्कुराना
क्योंकि पिता के उदास कभी चेहरे नहीं मिले,
रौशन रहा बच्चों का जीवन सदा
क्योंकि पिता से बच्चों को कभी अंधेरे नहीं मिले।
बारिश में वो भीगते, फिर धूप में वो सूखते
कई बार हैं वो टूटते पर कभी बिखरे नहीं मिले।
मंथन में बच्चों को बस अमृत ही मिला
क्योकिं हाथों में पिता के बस हलाहल धरे मिले,
पिता के प्रेम से न शांत था कुछ और
क्योंकि उनके हृदय से कुछ और गहरे नहीं मिले।