रावण Atul Pethari
रावण
Atul Pethariनहीं इतना भी मैं पापी कि
कलयुग में मुझको जलाओ तुम,
हो सके तो पहले
राम बनकर आओ तुम।
मुझे नहीं मोह का बंधन
जो पल भर में तोड़ दो,
मुझे नहीं तनिक भी घबराहट
चाहो तो अभी राह में छोड़ दो।
मैं हूँ अभिमानी,
स्वयं पर आँच न आने दूँगा,
तुम नहीं भगवन जो तुम्हें
लंका से यूँ जाने दूँगा।
मैं तुम्हारे कण-कण को
कतरों में बाँट कर रख दूँगा,
मैं तुम्हें सोने की लंका सा
न अब कण भर दूँगा।
मैं नहीं पहचान का मोहताज
यह तुम जान लो,
मत करो हठ, लौट जाओ
बस बात मेरी मान लो।
फिर मुझको जानना चाहा
तो याद अब मैं दिलाता हूँ,
और कौन हूँ मैं, क्या हूँ मैं,
यह सब बतलाता हूँ।
मैं तांडव का हूँ रचयिता
मैं ही शास्त्र का सार हूँ,
मैं ही था कुरुक्षेत्र में
मैं ही गीता का ज्ञान हूँ।
दानव मुझे कहते हैं सब
मैं श्री राम का ही अवतार हूँ,
मैं ही हूँ जगत जननी,
मैं काली का श्रृंगार हूँ।
मैं हैं हूँ ब्रह्मा का ज्ञान,
मैं ही अश्वत्थामा का वरदान हूँ,
मैं ही हूँ त्रिलोक लोचन,
मैं भू का स्वामी हूँ।
मैं ही जल हूँ, मैं ही थल हूँ,
मैं ही धूम, मैं ही केतु,
मैं वन हूँ, मैं ही वानर,
मैं ही हूँ बस रामसेतु।
जल भी मैं हूँ, थल भी मैं,
आज भी मैं हूँ कल भी मैं हूँ,
प्रेम भी में हूँ, भय भी मैं हूँ,
नहीं फिर भी मैं भगवान हूँ,
मैं तो बस महान हूँ।
मैं हूँ रावण
तुम मुझको नहीं मिटा पाओगे,
मुझको जलाने वालों
तुम स्वयं राख हो जाओगे।
मैं कलयुग का कुछ भी नहीं
मैं हर युग का भगवान हूँ,
मैं ही श्लोकों में समाहित
मैं ही गीता-कुरान हूँ।
मेरी बराबरी तुम नहीं कर पाओगे
शीश काट कर क्या तुम चरणों मे रख पाओगे?
विश्व लोक के स्वामी मुझसे ही प्रसन्न हुए
मुझसे लड़ने के ख़ातिर भगवान स्वयं खड़े हुए।
मैं नहीं मानव कि मुझमें अश्लीलता है झाँकती
न ही मैं सीता का वचन जिसने दहलीज़ पार की,
मैं तो पत्थर जिसपर राम लिखो तर जाएगा
एक रावण को मिटाने वालों, हर दौर में एक रावण आएगा।
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इस कविता में रावण के सकारत्मक भावों को दर्शाया गया है। कविता में रावण अपनी भूमिका को महानता से जोड़ता हुआ बताता है कि मैं कौन हूँ, क्या हूँ। अंततः रावण यह भी कह रहा है कि मुझे जलाने से क्या होगा, हर दौर में एक रावण आएगा। अंत में रावण का कहना है कि मैं तो बस एक पत्थर हूँ, जिसपर राम लिखो तर जाएगा।