अब वो बात कहाँ CHANDRESH PRAGYA VERMA
अब वो बात कहाँ
CHANDRESH PRAGYA VERMAरिश्तों में अब वो ‘एहसास’ कहाँ
दोस्ती में अब वो ‘जज़्बात’ कहाँ
नया खरीदने का वो ‘उत्साह’ कहाँ
त्योहारों में अब वो ‘मिठास’ कहाँ
गुरु-शिष्य का अब वो ‘रिश्ता’ कहाँ
भाई-भाई में पहले जैसा वो ‘प्यार’ कहाँ
स्वादिष्ट खाना पर अब वो ‘स्वाद’ कहाँ
रुपया है ज्यादा पर वो ‘सम्पन्नता’ कहाँ
बड़े बड़े व्यापार हैं पर वो ‘साझेदार’ कहाँ
गहरी-गहरी दोस्ती पर वो ‘राजदार’ कहाँ
स्वास्थवर्धक खान-पान पर वो ‘स्वास्थ्य’ कहाँ
बड़े-बड़े मंदिर हैं पर भक्ति का वो ‘भाव’ कहाँ
जीवन में सुविधाएँ बहुत पर वो ‘आनंद’ कहाँ