अभिव्यक्ति का मार्ग Kuldeep Kriwal
अभिव्यक्ति का मार्ग
Kuldeep Kriwalविस्तृत कर अपने प्रकीर्ण को
यश का वैभव लहराया,
चेतना के बिंब को ऊँचा कर
कर्म सौंदर्य का मोह लगाया।
पर मानव की वेदना को सह
अपने जीवन का संतोष बनाया,
सुख-दु:ख की लहरों पर चलकर
सागर तट पर घर बनाया।
वेदना के फूटते हर स्वर को
अपनी वाणी का गान बनाया,
समय के किए हर दुर्व्यवहार को
मैंने अपने गले का हार बनाया।
उलझी हुई धूप की किरणों को
अपने अनुभव का तेज बनाया,
सपनों की हर ओझलता को
जीवन की अभिव्यक्ति का मार्ग बनाया।
पद तल रुंदा खुद को दूब जैसे
सुख का एहसास कराया,
वक्त की बेरुखी को भी मैंने
अपने चेहरे की मुस्कान बनाया।
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मानव जीवन समस्याओं और परेशानियों से घिरा हुआ है और उसके संपूर्ण जीवन में सुख-दुःख मौसम की भांति बदलते रहते हैं। सुख का समय तो आसानी से निकल जाता है मगर दुःख का समय बेहद पीड़ादायक और धीमी गति से निकलने वाला होता है। इस समय मनुष्य को दुःख से न घबराकर उसमें ज़िन्दगी से जीने के हुनर को ढूँढ़ना चाहिए और उसे अपनी अभिव्यक्ति का मार्ग बनाना चाहिए।