माँ, बिटिया और रात Diwakar Srivastava
माँ, बिटिया और रात
Diwakar Srivastavaछोटी सी बिटिया रात में यूँ ही जाग जाती है,
नन्हे कपास-हाथों से माँ को सहलाती है।
माँ जाग जाती है,
उनींदी आँखों से माँ, थपथपाती, लोरी गुनगुनाती है !
न सोई फिर भी बिटिया तो, मीठा सा गरियाती है !
कभी झुंझला उठती, तो कभी खीझ सी जाती है !
कभी अपने से चिपकाती तो कभी कंधे से पारती है !
आखिर ,बिटिया सो जाती है।
सोते मुखड़े को माँ प्यार से निहारती है ,
जाने क्या-क्या बिटिया से वो बतियाती है,
*उदर से निकले अपने **"उर" को,
भर के सांसों में संतान सुगंध को,
बिटिया को सूंघती,चूमती,सो जाती है !
लेकिन ,
बिटिया फिर जाग जाती !!!
जननी ने जननी को जन्म दिया,
धरती ने प्रकृत को पैदा किया
भले पिता का, पितृ-तर्पण न करती हो बिटिया
लेकिन जीवन भर सुख अर्पण करती है बिटिया
जय हो बिटिया , जय हो बिटिया ! जय हो बिटिया !