छद्म रूप Diwakar Srivastava
छद्म रूप
Diwakar Srivastavaजो मद्धिम मलिन सा हुआ
जीवन का गति प्रकाश कभी,
सांझ, सूरज की किरणों से
अपने घर का पता पूछ लेता हूँ।
बनावटी सोते से धुल के साफ़ हुआ
छद्म रूप मेरा कभी,
अपने घर के आँगन की धूल में मैं,
बेपरवाह लोट लेता हूँ।
जो रोका कठिनायों ने मुझे,
और गिरा जीवन पथ पे औंधे मुँह यूँ कभी,
शून्य नभ को मुख कर,
परोक्ष पूर्वजों की सलाह पर गौर कर लेता हूँ।
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जीवन की इस भाग दौड़ में मनुष्य हमेशा छद्म रूप रख कर लोगों के बीच रहता है, दिनभर बनावटी बातें करता है अपनी नौकरी या व्यवसाय के चक्कर में, ऐसे में जब उसे जीवन में जीवन-ज्योति का प्रकाश कम लगता है या किसी विपदा में उसे अपने घर परिवार और पूर्वजों की सलाह ही काम आती है।