प्रेम का चेहरा Arun Kumar Singh
प्रेम का चेहरा
Arun Kumar Singhसमय-समय पर कभी-कभी
यूँ ही लगता है मानो प्रेम अद्वितीय है,अविजित है।
समय के साथ वही प्रेम नफ़रत में भी तब्दील हो जाता है,
क्या यही प्रेम, प्रेम का असली चेहरा दिखलाता है।
अत्यंत कठिन स्थिति, परिस्थिति में भी जिससे
एक माँ को अपना लाडला ही नज़र आता है,
जिससे हर दोस्त अपने दोस्तों के लिए
कुछ भी कर गुज़र सकता है।
बुरे समय की चाहे कितनी ही तेज़ आँधी हो
लेकिन इस अडिग प्रेम को न डिगा पाता है,
क्या यही प्रेम, प्रेम का असली चेहरा दिखलाता है।
इस संसार की कल्पना जिसके बिना अकल्पनीय है,
रिश्तों में मुग्धता-मधुरता जो घोले हुए है,
न जाने क्यों कुछ कृत्यों, कुछ अवसरवादी कृत्यों से
प्रेम से भरोसा उठ जाता है,
क्या यही अवसरवादी प्रेम, प्रेम का असली चेहरा दिखलाता है।
माना कि प्रेम हमें कई बार निराश-हताश कर जाता है,
सच्चा प्रेम वही जो असंख्य झंझावातों से कभी न घबराता है,
इनसे लड़ने का अदम्य साहस भर जाता है।
मानव हो या हो देवता,
उनका सच्चा प्रेम ही उन्हें अमर बनाता है,
क्या यही सच्चा प्रेम, प्रेम का असली चेहरा दिखलाता है।