मैं अहिल्या नहीं बनूँगी Hrishita Singh
मैं अहिल्या नहीं बनूँगी
Hrishita Singhमैं अहिल्या नहीं बनूँगी,
किसी इंद्र की वासनाओं पर
अपना तिरस्कार नहीं सहूँगी,
कल भी मैं शुद्ध, पुनीत, पवित्र थी
और मैं कल भी रहूँगी।
कब तक किसी गौतम के श्राप से
यूँ ही पत्थर बनी रहूँगी,
क्यों मैं अपने उद्धार के लिए
राम की प्रतिक्षा करूँगी।
किसी के पद स्पर्श से
कैसे मैं खुद को शुद्ध कहूँगी,
मैं अपनी निष्कलंकता के लिए
कब तक जग से लड़ूँगी,
अब मैं अहिल्या नहीं बनूँगी।