मकड़ी  Goutam Kumar Mahto

मकड़ी

Goutam Kumar Mahto

एक छोटी सी मकड़ी
घर के काठ पर दिख जाती है,
ये उड़ती नहीं, लेकिन हवा में लटक जाती
गौर किया तो पता चला कि
जाल बुनना इसको आता है।
 

जब बुन रही थी जाल वो
मैंने अपनी बाधा डाल दी,
लेकिन ना तो गुस्से में दिखी
और ना ही कोई आवाज़ निकाली।
सब कुछ नजरअंदाज कर के
फिर अपने काम में लग गई,
काम पूरा हो जाने पर
चुपचाप एकांत किनारे पर जा बैठती
और होनी की प्रतीक्षा करती।
 

मैं इतना बड़ा इंसान
वो इतनी सी छोटी मकड़ी,
पर तनिक न घबराती
काश वो मेरे पास, मेरे साथ रह पाती।

अपने विचार साझा करें




1
ने पसंद किया
282
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com