पापा कम सुनते हैं  Anupama Ravindra Singh Thakur

पापा कम सुनते हैं

Anupama Ravindra Singh Thakur

अच्छा है,
पापा, अब काम सुनते हैं।
 

बेटे अब बड़े हो गए हैं,
बढ़ती उम्र के साथ-साथ
आशाएँ भी उनकी बढ़ी हैं,
बेटों और पोते से चाहत
अब बढी है।
 

पर यह क्या,
पापा की हरकतें देख
सब की भृकुटी तनती है,
अब पापा की हर बात में
उन्हें नादानी दिखती है,
उनके बीच में बोलने पर
बेटों की आवाज चढ़ती है,
अच्छा है,
पापा, अब काम सुनते हैं।
 

चश्मे का कहीं भूल जाना
सबको बड़ा अखरता है,
चार ताने सुनकर ही
चश्मा हाथ में मिलता है,
तानों की यह बौछार तो
हर बात में अब मिलती है,
अच्छा है,
पापा, अब काम सुनते हैं।
 

पापा की खरीदारी
अब फ़िज़ूल खर्ची लगती है,
उनके शौक,
उनकी आदतें,
सठीयापन लगती है।
भगवान में मन लगाओ
यही सलाह अब मिलती है,
अच्छा है,
पापा, अब काम सुनते हैं।
 

उनका कराहना,
धीरे से चलना,
सबको नौटंकी लगता है,
बीमारी और घबराहट में भी
कहाँ सहारा मिलता है,
इनके बड़े नखरे हैं
यही उलाहना
अब मिलती है,
अच्छा है,
पापा, अब काम सुनते हैं।

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