चलते जाना है Aman Kumar Singh
चलते जाना है
Aman Kumar Singhये बात है हमारे हर एक चूकते वार की,
कहानीकार जिसमें हम खुद ही हैं, और हम ही किरदार भी।
हर बार सपने बुनता है पर टूट जाता है,
पिता के फोन आने से सब्र फिर छूट जाता है।
निकल पड़ते हैं फिर से बाप को भरोसा दिलाने को,
कि अब खुद के लिए नहीं बस उसको जिताने को।
हर बार टूटा, रोया और फिर चल पड़ा,
मंजिल करीब ही थी तो फिर से निकल पड़ा।
क्यों फिक्र करता है अभी वो दिन भी आना है,
फक्र से जब बाप को सीने लगाना है।
माँ-बाप को अपनी आँखों से सपने दिखाना है,
बस इसी के वास्ते हमें चलते जाना है।
कोई अपना जो रास्ता तेरा तक के बैठा है,
उसके साथ चलना है, तुझे ज़िन्दगी बिताना है।