चाहत है Gulshan Kumar Pal
चाहत है
Gulshan Kumar Palचाहत है तुझे चाहने की,
पर चाहकर क्या करूँगा।
चाहत है फिर से इश्क़ की,
पर प्यार भी पाऊँगा?
चाहत है तुझे ढूँढने की,
पर मिलकर क्या करूँगा।
चाहत है फिर से खोजाने की,
पर आ भी पाऊँगा?
चाहत है तुझे पाने की,
पर पाकर क्या करूँगा।
चाहत है फिर से टूटने की,
पर जुड़ भी पाऊँगा?
चाहत है तुझे देखने की,
पर निहारकर क्या करूँगा।
चाहत है फिर से आजमाने की,
पर भरोसा भी पाऊँगा?
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किसी को चाहना आसान नहीं होता। एक बार वो धोखा दे देता है तो दिल और दिमाग़ काम करना बंद कर देता है। उसके ख्यालों में बस खोए रहते हैं कि एक बार बात हो जाए फिर सब ठीक कर दूँगा। पर ठीक करके भी क्या होगा जब वो फिर से छोड़ दे हमें अकेला। और आशिक तो सिर्फ अपनी प्रेमिका को याद करते-करते ये सब सोचते हैं यही प्रस्तुत कविता का मर्म है।