कर्ण Gulshan Kumar Pal
कर्ण
Gulshan Kumar Palबचपन जिया असत्य में, होकर अनजाना मैं,
सूर्यपुत्र होकर भी, सूतपुत्र कहलाया मैं।
राजपाट का न था लालच मुझे, सबको देता था दान,
अपमान सह कर भी चुप था, सबसे था अनजान।
मित्रता के लिए दी थी मैंने अपनी जान,
होकर मृत्युंजय पा लिया मैंने अपना सम्मान।
ना डरा मैं भगवान से, चलाए आपने बाण,
धर्म के लिए, दी मैंने अपनी जान।
नाम रहेगा अमर मेरा, जब बात होगी शूरवीरो में,
अर्जुन से पहले लेंगे मेरा नाम महान योद्धाओं में।
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इस कविता में हम दानवीर कर्ण के बारे में पढ़ रहे हैं जो एक महान योद्धा थे। वो अपनी पूरी ज़िन्दगी संघर्ष करते रहे और वीर योद्धा की तरह अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ते रहे। महाभारत में उन्हें छल से मारा गया था और उन्होंने अपनी जान हँसते-हँसते दे दी थी। वह अपने मित्र की रक्षा के लिए भगवान से भी लड़ने को तैयार थे। उन्होंने महाभारत के युद्ध में एक अहम भूमिका निभाई थी।