कर्ण  Gulshan Kumar Pal

कर्ण

Gulshan Kumar Pal

बचपन जिया असत्य में, होकर अनजाना मैं,
सूर्यपुत्र होकर भी, सूतपुत्र कहलाया मैं।
 

राजपाट का न था लालच मुझे, सबको देता था दान,
अपमान सह कर भी चुप था, सबसे था अनजान।
 

मित्रता के लिए दी थी मैंने अपनी जान,
होकर मृत्युंजय पा लिया मैंने अपना सम्मान।
 

ना डरा मैं भगवान से, चलाए आपने बाण,
धर्म के लिए, दी मैंने अपनी जान।
 

नाम रहेगा अमर मेरा, जब बात होगी शूरवीरो में,
अर्जुन से पहले लेंगे मेरा नाम महान योद्धाओं में।

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