अपने-अपने चाँद  Aman Kumar Singh

अपने-अपने चाँद

Aman Kumar Singh

हर रोज़ आसमां में चाँद आता है,
हर शाम लोगों को सपने दिखाता है,
कहीं मम्मी अपने बेटे को चाँद कहती है,
कहीं बेटा इसे फिर अपना मामा बताता है।
 

अमीरों की कहीं ये जागीर बन बैठा,
कहीं पर ये लोगों को भूखा सुलाता है।
कोई चाँद में घर बनाने के ख्वाबों में खोया है,
कोई अपने को खो फिर चाँद के संग रोया है।
 

कोई झंडे पर रखकर चाँद भी भूखा जगाता आवाम को,
वहीं एक देश है जो चाँद पर भी तिरंगा लहराता है,
कोई महबूब को चाँद से भी सुंदर बताता है,
किसी का चाँद हर रोज़ छत पर आता है।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
100
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com