आज फिर Pooja Sharma
आज फिर
Pooja Sharmaभोर में
देखा उसे।
कूड़ा बीनते हुए
गुज़र-बसर करने को
निकल पड़ता है अंधेरे मुँह,
कूड़े के ढेर को टटोलने।
शायद अपनी किस्मत
को नित दिन खोजता है।
जीर्ण-शीर्ण वस्त्र उसके,
बिखरे बाल
रह-रह जिंदगी का हाल सुनाते हैं।
न जाने कैसा शापित जीवन
वह ढोता है,
रोज़ के गुज़र बसर के लिए
कुछ सिक्के मानो कूड़े में
रात को बोता है।
अपने विचार साझा करें
चाहे भारत आज विकासशीलता के पायदान पर खड़ा है पर फिर भी समाज का एक वर्ग आज भी दो वक्त की रोटी के लिए कूड़ा बीनने को विवश है। देश का भविष्य कहलाए जाने वाले बच्चे भी इसमें सम्मिलित हैं, फिर कैसे वे शिक्षा के अधिकारी हो सकते हैं। मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति ही उनके लिए चुनौती है।