श्रीराम गाथा  Anupama Ravindra Singh Thakur

श्रीराम गाथा

Anupama Ravindra Singh Thakur

श्रीराम पर क्या लिखूँ
समझ छोटी पड़ती है,
मन-मस्तिष्क की हर नस
राम-राम ही कहती है।
 

चरित्र लिखूँ या गुणगान लिखूँ
या मानवता का उद्धार लिखूँ,
शब्दों में कहाँ वो ताकत है
जो रामनाम की गाथा लिखूँ।
 

धैर्य लिखूँ या मर्यादा लिखूँ
या अपनों से विरह पीड़ा की
वह हृदय विदारक अनुभूति लिखूँ,
कलम में कहाँ वो ताकत है
जो सियाराम की गाथा लिखूँ।
 

पितृभक्ति या मातृप्रेम लिखूँ
या धर्मपालन की पराकाष्ठा लिखूँ,
लक्ष्मण का भातृप्रेम लिखूँ
या उर्मिला की विरह वेदना लिखूँ,
शब्दों में कहाँ वह ताकत है
जो उर्मिला का तप-त्याग लिखूँ।
 

पश्चाताप या ग्लानि लिखूँ
या राम की प्रतीक्षारत व्याकुल
वह भरत की सूनी आँखे लिखूँ,
या रात्रि-दिवस बहते
मांडवी के वे ऑंसू लिखूँ,
कलम में कहाँ वह ताकत है
जो पतिव्रता मांडवी की
निस्वार्थ मौन सेवा लिखूँ।
 

श्रीराम का धैर्य लिखूँ
या लक्षमण का पुरुषार्थ लिखूँ,
भरत की विनम्रता लिखूँ
या शत्रुध्न की कर्तव्यनिष्ठा लिखूँ,
कलम में कहाँ वे ताकत है
जो वाल्मीकि समान राम-गाथा लिखूँ।
 

कौशल्या का संताप लिखूँ
या सुमित्रा का त्याग लिखूँ,
या वैदेही की नारी पीड़ा लिखूँ
या मांडवी का व्यक्तित्व लिखूँ,
कलम में कहाँ वे ताकत है
जो तुलसी समान राम-गाथा लिखूँ
जो तुलसी समान राम-गाथा लिखूँ।

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