जीवन सार Shashi Shekhar Mishra
जीवन सार
Shashi Shekhar Mishraकागज़ में समेटा ज्ञान को
फिर ग्रंथ बनाकर बेच दिया,
अपने चित्त को ना समेट सका
अपनी बुद्धि पर खेद किया।
फिर बुद्धि को विश्राम लगा
मैं गया हिमालय तप करने,
उस तप की ताप ना झेल सका
यह नश्वर देह भी भस्म किया।
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यह कविता मानव जीवन के सार को अभिव्यक्त करती है। यहाँ व्यक्ति पुस्तक में ज्ञान को समेट कर संसार को प्रस्तुत कर देता है किंतु अपने चैतन्य को नियंत्रित नहीं कर पाता। आत्मबोध होने पर वह चित्त को नियंत्रित करने के लिए ध्यान और तप की ओर मुड़ता है किंतु बहुत संघर्ष करने पर भी वह तप की कठिनाइयों को सहन नहीं कर पाता। यह कविता दर्शाती है की बाहरी ज्ञान को प्राप्त करना आसान है किंतु आत्मज्ञान प्राप्त करना बहुत कठिन।