सपनों की कीमत Shivam Parashar
सपनों की कीमत
Shivam Parasharदीपों की लौ में उत्सव की चमक
पर यादें बहतीं अंधियारे पथ पर,
दो राहें मुड़तीं, एक मंज़िल को जातीं
जहाँ मेरा दिल, मेरा घर बसता है।
न दीवारों में, न रंग-बिरंगे द्वारों में
बस उस प्रेम में जो सदा साथ है,
माँ-बाप की मुस्कान, उनकी उजली आँखें
धुंधली रोशनी में उनकी धीमी प्रार्थनाएँ।
हर किताब जो पढ़ता हूँ, हर परीक्षा में,
उनसे पाता हूँ साहस और संबल मैं,
उन्होंने आशा के धागों से घोंसला बुना
तो मुझे ऊँचाई छूनी है, उनके सपनों को जीना।
सपनों का बोझ भारी है सही
मगर उनके लिए प्यार से राह रौशन है यही,
उनके बूढ़े हाथ, जो कभी मज़बूत थे,
उनकी शांति के लिए सितारे बनना है मुझे।
दिवाली की रात, भले हों दूरियाँ हज़ार,
मेरा मन बसा है वहीं, उनके पास,
सफलता होगी मेरी सौगात, मेरा वचन-
उनकी आत्मा को उठाने को रोशनी का कंचन।
क्योंकि घर सिर्फ दीवारों का ढाँचा नहीं
वो है जहाँ प्रेम का सच्चा ठिकाना बसा,
और मैं जिस संकल्प से आगे बढ़ता हूँ
मेरी जीत उनका सम्मान बनेगी सदा।
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प्रस्तुत कविता, उन भावनाओं और बलिदानों का चित्रण करती है, जो अपने प्रियजनों से दूर रहकर, अपने सपनों को पूरा करने में निहित होते हैं। इस कविता में दीपावली की चमक और त्योहार की रौनक के बीच, एक युवा का अपने माता-पिता के प्रति प्रेम और उनके लिए कुछ कर गुजरने का संकल्प उभरता है।