काश मैं तुम्हें अपना बना पाता Shivam Parashar
काश मैं तुम्हें अपना बना पाता
Shivam Parasharकाश मैं तुम्हें अपना बना पाता
अगर ये मेरा हक होता,
पर किस्मत में ये नहीं लिखा, सच में।
काश मैं तुम्हें अपना बना पाता,
अगर इसमें कुछ भला होता,
पर अफसोस, किस्मत साथ नहीं।
काश मैं तुम्हें अपना बना पाता,
अगर हम कुछ पल साथ बिता पाते,
मगर इस जीवन में ये मुमकिन नहीं।
शायद अगले जन्म में—
अभी नहीं, अभी नहीं!
जब ये तुम्हें दु:ख से नहीं,
बल्कि खुशी से भर दे।
क्योंकि प्यार कभी मरता नहीं;
ये हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा!
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यह कविता एक ऐसे व्यक्ति के दिल की गहराईयों से निकली है जो अपने प्रेम को पाने में असमर्थ है, लेकिन उसकी भावनाएँ सच्ची और अमर हैं। यह कविता उस अनकही चाहत, अधूरे सपनों और उम्मीद की कहानी है जो कभी पूरी नहीं हो पाती, फिर भी मन में एक आशा बनी रहती है कि शायद अगले जन्म में यह प्रेम साकार हो सके।