आज़ादी मिथ्या है  CHANDRESH PRAGYA VERMA

आज़ादी मिथ्या है

CHANDRESH PRAGYA VERMA

आज़ादी मिथ्या है क्योंकि
हम आज भी गुलाम हैं
पिछड़ी मानसिकता के।
कहते हैं आगे बढ़ रही है बेटियाँ
पर फिर भी एक असुरक्षा है,
अविश्वास है एक दूसरे पर,
पर बता नहीं सकते।
खुली हवा में साँस लेने की आज़ादी
बस अब नाम की है,
क्योंकि फैला तो हवाओं में जहर ही है।
हाँ आज़ादी मिथ्या तो है लेकिन
दूर कहीं रौशनी है सूरज की,
जो आएगी पास मेरे एक दिन
इसका मुझे विश्वास है,
फिर फैलेगा उजाला तम से ऊपर,
जब आज़ादी के गीत गुनगुनाएँगे
और हम सब आज़ादी का जश्न मनाएँगे।

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