धरा के प्रहरी  Anupama Ravindra Singh Thakur

धरा के प्रहरी

Anupama Ravindra Singh Thakur

प्रतिदिन बिछती लाशों को देख,
नित्य जलती चिताओं को देख,
सैनिक! तुम क्यों नहीं घबराते हो?
 

क्या तुम्हारा कोई अपना नहीं,
जिसके मोह में उलझ जाते हो?
घर-परिवार, रिश्ते-नाते,
क्या तुम्हें नहीं अपनी ओर बुलाते?
 

दूसरों की रक्षा करते-करते,
अपने कुटुंब को कैसे भूल जाते हो?
शत्रु की गोली खाकर भी,
किस शक्ति से आगे बढ़ते जाते हो?
 

क्या माँ की लोरी नहीं बुलाती?
बहन की राखी क्या नहीं रुलाती?
बाबूजी की प्यार भरी डाँट,
क्या तुम्हें नहीं याद आती?
 

दोस्तों की मस्ती क्यों नहीं सताती?
कैसे वज्र-सा मन बना लिया है?
जो पीड़ा सहकर भी,
रणभूमि में अविचल डटा रहता है।
 

देश ही मन, देश ही प्राण,
देश ही माता, देश ही मान,
इस पर सर्वस्व लुटाकर,
तुमने नव इतिहास रचाया है।
 

रक्त की हर बूँद अमर होगी,
तुम्हारी वीरता का गान रहेगा,
जब तक यह धरती जीवित है,
सैनिक! तेरा सम्मान रहेगा।

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