अनकहे एहसास Anupama Ravindra Singh Thakur
अनकहे एहसास
Anupama Ravindra Singh Thakurकिसे समझाऊँ
जो चल रहा है मुझ में?
एक अजीब सी उथल-पुथल मची है,
पल में गुस्सा तो पल में खुशी है,
दिल की धड़कन
क्यों बिना बात के बढ़ जाती है,
बिना बात के ही सांस फूलती है,
बिना बात के ही भय खाती है।
कैसा यह दौर है
मन बना बड़ा कमज़ोर है।
कैसे समझूँ?
कैसे समझाऊँ?
परिवर्तन जो अंदर है
उसे बाहर कैसे लाऊँ?
ऊपर से दिखती सुदृढ काया
अंतर्मन में द्वंद है छाया,
हर पल कुछ घट रहा है
वो मेरा मनोबल है,
हर पल कुछ बढ़ रहा है
भय, क्रोध, अवसाद है।
मेरा युद्ध मुझी से है
नहीं कोई सहायक यहाँ,
अपनों ने ही नहीं समझा
तो गैरों से फिर उम्मीद कहाँ?
उम्र का यह पड़ाव भी पार होगा,
प्राकृतिक परिवर्तन का शमन होगा।
उम्मीद है मुझे
इस अंधेरे में एक रौशनी है कहीं,
यह आंतरिक तूफान भी शांत होगा,
समय के साथ हर घाव भर जाएगा,
और मन का डर, एक दिन हार जाएगा।
हर दर्द को सीने में समेट लूँगी,
नए विश्वास के साथ फिर से उठूँगी।
धैर्य और साहस का हाथ थामे,
हर कड़ी राह को आसान बना लूँगी।
वो अंधेरा, वो भय, वो क्रोध,
एक दिन सब कुछ पीछे छोड़ दूँगी।
मन की शक्ति से मैं लड़ूँगी,
और अंत में, खुद से ही जीत जाऊँगी।
