वर्षा वरदान  Anupama Ravindra Singh Thakur

वर्षा वरदान

Anupama Ravindra Singh Thakur

प्रकृति के मोहक रूप का
कैसा रूप निखार हुआ,
झर-झर बरसा अम्बर
और कण-कण साकार हुआ।
 

धधकती धरती, उठती लपटों
पर ऐसा वर्षा का प्रहार हुआ,
बूंद-बूंद से कण-कण में
प्राणों का संचार हुआ।
 

मदमस्त शीत बयार चली
और वसुधा का श्रृंगार हुआ,
नववधू सी लज्जा से झुकी
वृक्ष-लताओं में प्रणयसंचार हुआ।
 

रेणु की भीनी गंध से
अंग-अंग में मादकता का प्रमाद हुआ,
छाई हरियाली अवलोक मन
झूम-झूम जैसे वृद्ध से बाल हुआ।
 

प्रकृति का यह लुभावना रूप
देख हर तान का त्राण हुआ,
हर जीव, हर प्राण में
अनोखी ऊर्जा का संचार हुआ।

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