बरसात : तीन दोहा मुक्तक  Nawal Kishore Singh

बरसात : तीन दोहा मुक्तक

Nawal Kishore Singh

धधक दरक धरणी रही, ज्यों विरहन की रात।
डोले नभ में घन-पिया, कड़क दामिनी घात।।
चातक दृग नभ पर टिके, बरसा की उर चाह,
तन-मन बंजर बावरी, नयनों में बरसात।।

★★

प्रणय पिपासित कामिनी, आतुर नयन निवेश।
तप्त धरा-सी खोजती, नभ में घन-प्राणेश।।
आने वाले हैं पिया, लेकर प्रेम फुहार,
चमक-दमककर दामिनी, देती तब संदेश।।

★★

झमझम जो बरसे पिया, हरित भरित हो पात।
वसुधा का आँचल भरे, नवकोंपल सौगात ।।
सोच सरस मनसिज मधुर, सृजन सुखद सुखरास,
घहरे घन नभ में सघन, पुलकन उर परिजात।

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