ऑटिज़्म की कहानियाँ Sunil bansal
ऑटिज़्म की कहानियाँ
Sunil bansalऑटिज्म की हर नई कहानी हमें रोज़ रुलाती है,
खो जाता हूँ कहीं और ही, कुछ गहरी सोच में,
ख्यालों में हमें बहुत पीछे धकेल जाती है।
गुज़र गया जो मुश्किल वक्त, उसकी फिर से तस्वीर दिखाती है,
दो साल के संस्कार और सात्विक की यादों में ले जाती है।
बच्चों की मासूमियत और माँ-बाप का दर्द सुनाती है,
औलाद का दु:ख क्या होता है इसका एहसास बार-बार कराती है।
सोचता रहता हूँ रात भर इन मासूमों के बारे में,
क्या रिश्ता है मेरा इन बच्चों से, क्यों ये मुझे सताती है,
बहुत संस्कार और सात्विक हैं अभी भी, ठीक करने को,
जिम्मेदारी भरी ये पुकार मुझे हर दिन बुलाती है।
मेरी यात्रा अभी बहुत लंबी है इन सबके साथ,
ये दु:ख भरी दास्तानें, मुझे बहुत सताती हैं,
ज़िंदगी कब किस वक्त हमें किसी मोड़ पे ले जाती है,
पर हर पल कुछ-न-कुछ नया सिखा जाती है।
हर रोज़ की नई ईमेल्स में लिखे दर्द भरे शब्द
हमें हर माँ-बाप की चीख-पुकार सुनाती हैं,
हर कहानी में छुपा हुआ दर्द और संघर्ष
हमें एक और ज़िंदगी बदलने के लिए तैयार कर जाती है,
आँखों के सामने संस्कार, सात्विक का इतिहास दोहराती है,
ऑटिज्म की हर नई कहानी हमें बहुत रुलाती है।
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प्रस्तुत कविता ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों और उनके परिवारों की भावनाओं को व्यक्त करती है, जो हर दिन हमें गहराई से छू जाती हैं। यह कविता उन कठिनाईयों, मासूमियत, और गहरे संबंधों को उजागर करती है जो इन परिवारों का हिस्सा होती हैं। हर नई कहानी, हर नया अनुभव, हमें कुछ नया सिखा जाता है और हमें एक और ज़िंदगी बदलने के लिए प्रेरित करता है।
