गाँव से शहर की दूरी  Hrishita Singh

गाँव से शहर की दूरी

Hrishita Singh

शहर आया था मेरे गाँव,
गाँव नहीं गया था
शहर तक।
 

आधुनिकता की जंजीर पहनाई,
विकास का फंदा लगाया
और घोंट दिया गला गाँवों का।
रेल बनाई, रेल के डिब्बे बनाए
और डिब्बों में कैद इंसान बनाया,
जो भाग रहा शहर की ओर
उस विकास और आधुनिकता के गुलाम बनकर।
 

यहाँ पर बनी हुई है एक सड़क
जो पहुँचा रही है उन्हें शहर,
यहाँ लगाए बिजली के तार,
तारों में उलझी ज़िन्दगियाँ,
और इनमें दम तोड़ता गाँव।
 

गाँव से शहर दूर था
और शहर से गाँव बहुत दूर।

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