आज़ादी के परवाने  Amit Kumar Mahato

आज़ादी के परवाने

Amit Kumar Mahato

(1)
जब-जब ग़ुलामी ने पाँव पसारे
कोई-न-कोई शेर खड़ा हो गया,
कभी भगत सिंह, कभी आज़ाद बनकर
भारत का बेटा बड़ा हो गया।
 

(2)
माँ के आँचल को दाग न आने दिया,
सीना दे दिया गोलियों के सामने,
ये जज़्बा था, ये इरादा था,
कि मिट जाएँगे वतन के दीवाने।
 

(3)
नेताजी की गरज से काँपे दुश्मन,
"ख़ून दो – आज़ादी लो" का पैग़ाम,
रानी लक्ष्मीबाई ने रण में दिखाया,
औरत भी है रणभूमि की शान।
 

(4)
सरदार पटेल का लौह इरादा,
गाँधी की लाठी का अद्भुत कमाल,
लाल-बाल-पाल की हुंकार से,
काँपा था अंग्रेज़ी साम्राज्य काल।
 

(5)
ये आज़ादी कोई तोहफ़ा नहीं
कुर्बानियों का है गहना,
हर बूँद लहू की कहती है,
"भारत माँ से बढ़कर कुछ न रहना।"
 

(6)
आओ, तिरंगे की शान बढ़ाएँ
मातृभूमि के क़र्ज़ चुकाएँ,
जब तक एक भी साँस चले,
"जय हिंद" गूँजे, गूँजते जाए!

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