ये अंतः द्वंद समझ कर देखो  Hrishita Singh

ये अंतः द्वंद समझ कर देखो

Hrishita Singh

खंगाल लिया है खुद का अंतर्मन
और ये स्वांग रचा जीवन,
तुम भी इसमें उतर कर देखो
ये अंतः द्वंद समझ कर देखो।
जीवन जैसे कोरा काग़ज
उसपर रची हो कोई कविता,
और उसके कवि हो तुम
मैं तुम्हारी कोई रचना।
जिसे तुम अक्सर कहते हो "निरुत्तर",
मौन ही है मेरा अक्षर,
तुम मेरे शब्द पढ़कर देखो
ये अंतः द्वंद समझ कर देखो।

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