ये अंतः द्वंद समझ कर देखो Hrishita Singh
ये अंतः द्वंद समझ कर देखो
Hrishita Singhखंगाल लिया है खुद का अंतर्मन
और ये स्वांग रचा जीवन,
तुम भी इसमें उतर कर देखो
ये अंतः द्वंद समझ कर देखो।
जीवन जैसे कोरा काग़ज
उसपर रची हो कोई कविता,
और उसके कवि हो तुम
मैं तुम्हारी कोई रचना।
जिसे तुम अक्सर कहते हो "निरुत्तर",
मौन ही है मेरा अक्षर,
तुम मेरे शब्द पढ़कर देखो
ये अंतः द्वंद समझ कर देखो।
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यह कविता आत्ममंथन और जीवन की गहरी तलाश का परिणाम है। कवयित्री ने अपने अंतर्मन को खंगालकर यह जाना कि जीवन केवल एक स्वांग (नाटक) है, जिसमें हम सब अलग-अलग भूमिकाएँ निभाते हैं। इस कविता में कवयित्री जीवन को एक कोरे काग़ज़ के रूप में देखता है, जिसपर कोई और कवि (प्रिय/सृष्टिकर्ता/नियति) कविता लिख रहा है। कवयित्री स्वयं को उस रचना का एक अक्षर मानती है, जिसका मौन ही उसका सत्य है।