सरकारी दफ्तर और ई-फाइल का मिजाज CHANDRESH PRAGYA VERMA
सरकारी दफ्तर और ई-फाइल का मिजाज
CHANDRESH PRAGYA VERMAसरकारी दफ्तर में ई-फाइल का अब नया रिवाज है,
दिखती तो डिजिटल है, पर चाल में वही अंदाज़ है।
कभी थी कागज़ की रानी, अब स्क्रीन पर राज है,
पर स्वभाव में, ठहराव में, कहाँ कोई साज-बाज है?
पहले बाबू की टेबल पर घंटों इंतज़ार करती थी,
अब तो माउस के एक क्लिक में सफर शुरू करती है।
लेकिन सिस्टम की गलियों में, रुकावटों का राज है,
हर क्लिक के पीछे छुपा एक पुराना अंदाज़ है।
कभी उड़ती है फटाफट, जैसे रॉकेट में लगी हो आग,
तो कभी एक कोने में बैठ जाती है बनकर कोई राग।
"धक्का लगाओ, फाइल भेजो" का नियम आज भी चलता है,
इलेक्ट्रॉनिक है भले ही, पर चाल में वही नीरसता है।
कभी नोटिंग में उलझी, कभी ट्रैकिंग में खो जाती है,
फाइल है डिजिटल, पर बाबू से मिलने तो जाती है।
कभी कहो – “सर, देख लीजिए”, तो चलती है बड़ी तेज़,
वरना ई-मेल के जंगल में गुम, और जैसे हो गयी हो बेहोश।
अब तो ई-फाइल का भी इलाज़ ज़रूरी है,
काम की रफ्तार में सुधार भी ज़रूरी है।
लगे अलार्म, फाइल खुद पुकारे हर शाम,
"मुझे भेजो, मुझे भेजो", हो जाए काम तमाम!
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सरकारी दफ्तरों में अब ई-फाइल का ज़माना है ताकि कार्य जल्द हो सके पर ई-फाइल की गति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। फर्क इतना ही कि पहले पता नहीं चलता था किसके पास है अब पता चल जाता है। यह काव्य रचना इसी सरकारी तंत्र पर कटाक्ष है, क्योंकि कार्य की गति आज भी वैसे ही है।