भगवान कौन? Sunil bansal
भगवान कौन?
Sunil bansalना मैं किसी धर्म को मानता हूँ
ना किसी भगवान को जानता हूँ,
जो हुए अपने कर्मों से पूज्य हुए,
उन सब को महान मानता हूँ।
अमीर-गरीब में ना कोई भेद पहचानता हूँ
जो अच्छे कर्म करें, उसे गुणवान मानता हूँ।
समझे इंसान को इंसान और सब को एक समान,
बस उसी को मैं सच्चा इंसान मानता हूँ।
जात-पात से कोई मतलब नहीं
मैं सब को दिल से पहचानता हूँ,
इंसान हूँ, इंसानियत को ही
मैं अपना ईमान मानता हूँ।
इंसान सेवा से मिलने वाली
संतुष्टि को असली कमाई जानता हूँ,
ज़मीर की ख़ुशी के एहसास को,
सुखों का पर्याय मानता हूँ।
खेत में किसान, सरहद पर जवान,
को सम्मान पाने का हकदार मानता हूँ,
सत्य के पालन को ही विधान जानता हूँ,
मैं इस जीवन को एक इम्तिहान मानता हूँ।
रंग-भेद करें जो, इंसानियत का दुश्मन
उसे धरा पर धरा हैवान मानता हूँ,
जो इंसान से प्यार करें,
उसी को अच्छा इंसान मानता हूँ।
दौलत, शरीर, परिधान सब छूट जाएँगे,
जीवन का अंतिम फ़रमान जानता हूँ,
दुआओं को कर्मों का मकान मानता हूँ,
मिट्टी को जीवन का अंतिम निशान मानता हूँ।
तेरा-मेरा कुछ साथ न जाए,
जीवन की ये दास्तान जानता हूँ,
धरती पर ख़ुद को मैं
चार दिन का मेहमान मानता हूँ।
इंसान अगर इंसान हो जाए
तो धरती-स्वर्ग समान हो जाए,
क्या ज़रूरत फिर राम के अवतार की?
जब सब एक-दूसरे के भगवान हो जाएँ।
अपने विचार साझा करें
यह कविता मानवीय मूल्यों, कर्मों की महत्ता, और सच्ची इंसानियत पर केंद्रित है। ईश्वर और धर्म से अधिक, अच्छे कर्म, सच्ची इंसानियत, और सभी मनुष्यों की समानता ही सबसे महत्वपूर्ण है। कवि धर्म और पारंपरिक भगवान की पूजा को महत्व नहीं देता, बल्कि उन लोगों को महान मानता है जो अपने कर्मों से पूजनीय बने।
