ऑटिज़्म ने हमें माँ-बाप बना दिया  Sunil bansal

ऑटिज़्म ने हमें माँ-बाप बना दिया

Sunil bansal

बच्चे को सिर्फ जन्म दे देने से
ख़ुद को उनका भगवान मान लेने वाले,
सिर्फ मानवीय ज़रूरतों को पूरा करके
फिर उसका भी एहसान जताने वाले,
क्या दिन, क्या रात,
ख़ुद के काम में व्यस्त रहने वाले,
खाना खिला देने भर को
माँ-बाप का फ़र्ज़ समझने वाले,
हम दो चेहरों को क़ुदरत ने
एक जोरदार झटका दिला दिया,
बच्चे तो अपने आप ही पल जाते हैं,
हमारा ये भ्रम मिटा दिया।
 

समझो और साथ चलो तो
कितनी ख़ूबसूरत है क़ुदरत,
पर इसी क़ुदरत ने हमें
अपना भयंकर स्वरूप दिखा दिया।
बच्चे को डाँटने की बजाए
उनके मानसिक परिवेश को जानें,
बच्चे को उसी के दिमाग से समझें,
दुनिया को उसकी आँखों से देखें,
बच्चे के साथ उसकी गति से चलें,
हमें सब्र करना सिखा दिया,
कितना ज़रुरी है बच्चों को समय देना,
इस ज़रुरत का हमें एहसास करा दिया।
 

औलाद के दुःख से बड़ा कोई दुःख नहीं,
इस बात का एहसास करवा दिया,
पितृत्व से बड़ी कोई जिम्मेदारी नहीं,
ये आईना हमें दिखा दिया।
नॉर्मल बच्चा एक वरदान है
इस बात को हमारी रगों में समा दिया,
ज़िंदगी क्या होती है,
हमें इसको जीना सिखा दिया।
निभा सकें ये ज़िम्मेदारियाँ
हमें इस क़ाबिल बना दिया,
क्या थे हम और हमें क्या बना दिया,
ऑटिज़्म ने हमें असली माँ-बाप बना दिया!

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