सफलता का सफ़र Pratham Bhala
सफलता का सफ़र
Pratham Bhalaकि सदियाँ बीत जाती हैं मौसम की मार खाते हुए,
यूँ ही हर पत्थर हीरा नहीं होता,
और आसान नहीं होता कामयाबी का सफ़र,
वरना हर पत्थर आज पर्वत नहीं होता?
खज़ाने तक पहुँचने के लिए सागर की गहराईयों में उतरना पड़ता है,
जो आसानी से तट पर मिल जाए, वो कहाँ मोती है?
और स्वर्ण की चमक पाने के लिए खुद को तपाना पड़ता है,
वरना चिराग के जिन्न की तलाश तो हर अलादीन को होती है।
कीमत उसी की होती है जो दुर्लभ हो,
वरना पैसे तो लोग प्राण वायु के लिए भी नहीं देते,
वैसे तो लाखों सितारे हैं इस अम्बर को रोशन करने को,
मगर ख़ूबसूरती की तुलना तो चाँद से ही होती है।
बीज को सींच कर वृक्ष बनाना पड़ता है,
वरना आम के बीज से महँगे तो अंगूर बिक जाते हैं,
सिर्फ़ योग्यता से सफलता नहीं मिलती,
अंत में जयजयकार तो कर्मयोगी की ही होती है।
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सफलता की राह पर अक्सर हम किसी एक 'गुप्त नुस्खे' की तलाश में रहते हैं, जबकि सत्य यह है कि कामयाबी अनेक तत्वों का सही मिश्रण माँगती है। यह कविता इसी गहन सत्य को उजागर करती है। यह कविता बताती है कि महानता और मूल्य केवल तब मिलते हैं जब व्यक्ति कठिनाईयों का सामना करता है (पर्वत बनना), अथाह प्रयास करता है (सागर में उतरना) और अपनी क्षमता को कर्म में बदलता है (बीज को सींचना)।
