हमारे कृषकरामधारी सिंह 'दिनकर'

हमारे कृषक

रामधारी सिंह 'दिनकर' | अद्भुत रस | आधुनिक काल

जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है 
छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है 

मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है 
वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है 

बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं 
बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं 

पर शिशु का क्या, सीख न पाया अभी जो आँसू पीना 
चूस-चूस सूखा स्तन माँ का, सो जाता रो-विलप नगीना 

विवश देखती माँ आँचल से नन्ही तड़प उड़ जाती 
अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती 

कब्र-कब्र में अबोध बालकों की भूखी हड्डी रोती है 
दूध-दूध की कदम-कदम पर सारी रात होती है 

दूध-दूध औ वत्स मंदिरों में बहरे पाषान यहाँ है 
दूध-दूध तारे बोलो इन बच्चों के भगवान कहाँ हैं 

दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे 
दूध-दूध उफ कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे 

दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ किस घर से 
दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अम्बर से 

हटो व्योम के, मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं 
दूध-दूध हे वत्स! तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं

अपने विचार साझा करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com