ग़ज़ब है सुरम भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ब है सुरम
भारतेंदु हरिश्चंद्र | अद्भुत रस | आधुनिक कालग़ज़ब है सुरमः देकर आज वह बाहर निकलते हैं ।
अभी से कुछ दिल मुज़्तर[1] पर अपने तीर चलते हैं ।
ज़रा देखो तो ऐ अहले सखुन[2] ज़ोरे सनाअत[3] को ।
नई बंदिश है मजमूँ नूर के साँचें में ढलते हैं ।
बुरा हो इश्क का यह हाल है अब तेरी फ़ुर्कत[4] में ।
कि चश्मे खूँ चकाँ[5] से लख़्ते[6] दिल पैहम[7] निकलते हैं ।
हिला देंगे अभी हे संगे दिल तेरे कलेजे को ।
हमारी आहे आतिश-बार[8] से पत्थर पिघलते हैं ।
तेरा उभरा हुआ सीना जो हमको याद आता है ।
तो ऐ रश्के परी पहरों कफ़े[9] अफ़सोस मलते हैं ।
किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक[10] को तेरे ।
तड़फते हैं फ़ुगाँ[11] करते हैं औ करवट बदलते हैं ।
'रसा' हाजत[12] नहीं कुछ रौशनी की कुंजे मर्कद[13] में ।
बजाये शमा याँ दागे जिगर हर वक़्त जलते हैं ।
शब्दार्थ:
1. घबराए हुए
2. कविगण
3. व्यंजना
4. विरह
5. टपकने वाला
6. टुकड़ा
7. सदा
8. अग्निवर्षक
9. हथेली
10. आशिकों
11. रोना-चिल्लाना
12. ज़रूरत
13. क़ब्र
अपने विचार साझा करें
परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
Frquently Used Links
Facebook Page
Contact Us
Registered Office
47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.
Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com