जब आग लगेरामधारी सिंह 'दिनकर'
जब आग लगे
रामधारी सिंह 'दिनकर' | अद्भुत रस | आधुनिक कालसीखो नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं,
जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ;
या सिर के बल हो खडे परिक्रमा में घूमो।
ढब और कौन हैं चतुर बुद्धि-बाजीगर के?
गांधी को उल्टा घिसो और जो धूल झरे,
उसके प्रलेप से अपनी कुण्ठा के मुख पर,
ऐसी नक्काशी गढो कि जो देखे, बोले,
आखिर , बापू भी और बात क्या कहते थे?
डगमगा रहे हों पांव लोग जब हंसते हों,
मत चिढो,ध्यान मत दो इन छोटी बातों पर
कल्पना जगदगुरु की हो जिसके सिर पर,
वह भला कहां तक ठोस कदम धर सकता है?
औ; गिर भी जो तुम गये किसी गहराई में,
तब भी तो इतनी बात शेष रह जाएगी
यह पतन नहीं, है एक देश पाताल गया,
प्यासी धरती के लिए अमृतघट लाने को।
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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